परछाई सुबह,दोपहर,शाम को अलग-अलग दिशा में बनती है क्यों?
आपको मैं सीधा जवाब नहीं दूंगा, पहले एक प्रयोग करने के लिए कहूँगा। किसी अंधेरे कमरे में या रात को ये प्रयोग करना होगा।इसे करने के लिए आपको चिकनी-मिट्टी, साइकिल-स्पोक और टार्च (या मोबाइल का लाइट) की जरुरत होगी।अपने हाथों से चिकनी-मिट्टी का बड़ा सा बॉल बनाइए| इस बॉल के आर-पार साइकिल-स्पोक डालिए| साइकिल-स्पोक घुमाने से बॉल भी घूमेगी| बॉल पे किसीे एक जगह एक आलपिन लगाइये| अब टार्च ऑन की-जिये और उसकी रौशनी साइड से बॉल पे गिरने दीजिये| आपने जहाॅं आलपिन लगाई है उस जगह पे ध्यान देते हुए साइकिल-स्पोक को बहुत धीरे-धीरे घुमाइए| हमेशा बॉल का आधा हिस्सा रौशनी में होगा और आधा अंधेरे में| जैसे जैसे बॉल घूमेगी, आलपिन वाली जगह अंधेरे से उजाले में और फिर उजाले से अंधेरे में जाएगी| इसी तरह पृथ्वी अपने एक्सिस/अक्ष पे घूमती है| और उसे इस तरह एक पूरी चक्कर लगाने के लिए एक दिन का समय लगता है, याने कि 24 घंटे लगते है| हम पृथ्वी पे जिस जगह रहते है, वो जगह भी पृथ्वी के घूमने की वजह से सवेरे सूरज की रौशनी में आती है - जिसे हम सूर्योदय कहते है।अब आलपिन की परछाईं को ध्यान से देखिए।सूर्योदय के वक़्त परछाईं लंबी होगी।जैसे जैसे बॉल घूमेगा परछाईं की दिशा बदलती जाएगी। आप देखेंगे की मध्याह्न/दोपहर को ये परछाईं सबसे छोटी होगी। बॉल घूमते-घूमते शाम को सूर्यास्त के पहले फिर से परछाईं लंबी हो जाएगी और सूर्यास्त होने पर हम अंधेरे में चले जाएँगे| और परछाईं ग़ायब!
मुझे तुम्हारा सवाल बहुत अच्छा लगा। और सवाल ज़रूर पूछते रहना।
तुम्हारा,
सवालीराम
Anish Mokashi
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